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Tuesday 5 April 2011

फंस गया बेताल

कई घंटे आराम से सोया रहा बेताल. नींद टूटी तो देखा एक तरफ से सुनामी की तेज़ लहर चली आ रही है और दूसरी तरफ आग की लपटें आसमान छूने की कोशिश कर रही हैं. वह घबराया. जान बचाने के लिए एक तरफ भगा. तभी सामने से राजा विक्रम आता दिखा. वह चोंक गया. ये मरदूद कहां से आ गया. कहीं चैन से नहीं रहने देगा. विक्रम उसे घूरते हुए पकड़ने को लपका. बेताल ने कहा रुको राजन! पहले सुनामी और आग से अपनी जान बचाओ. विक्रमादित्य ने कहा-ये इस ब्लॉग की कविताओं से उठती हुई आग और सुनामी है. इसे महसूस करो. इससे डरो नहीं. इसके बाद विक्रमादित्य ने बेताल को कंधे पर लादा और चल पड़ा. बेताल बोला-राजन पहले मेरे सवालों का सही-सही जवाब दो नहीं तो तुम्हारे सर के हज़ार टुकड़े हो जायेंगे. 
बिक्रम बोले-पूछो..बेताल ने पूछा-पहले ये बताओ की तुम अंतर्जाल में पहुंचे कैसे? विक्रम ने बताया-"साइबर कैफे में तुम्हारे गायब होने के बाद मैंने उसके संचालक की गर्दन पर तलवार रखकर तुम्हारे बारे में पूछा. उसने बताया कि तुम्हें उसने न आते देखा न जाते. जब उसे पता चला कि मैं एक प्रेत को ढूंढ रहा हूं तो उसने कहा हो सकता है वो  अंतर्जाल में घुस गया हो.यहां जितने लोग हैं सभी का शरीर यहां है और आत्मा अंतर्जाल में भ्रमण कर रही है. बेताल प्रेतात्मा है तो हो सकता है वह सीधा अंतरजाल में घुस गया हो. मैंने पूछा-रास्ता बताओ मैं भी जाऊंगा तो उसने कहा कि मेरी आत्मा जा सकती है शरीर नहीं और आत्मा प्रेतात्मा को नहीं पकड़ सकती.  इसपर मैंने कहा कि तुम बस रास्ता बताओ. उसने मुझे कंप्यूटर और इन्टरनेट की शिक्षा दी. मैंने योग बल से सूक्ष्म शरीर धारण किया और अंतरजाल में आ गया. यह बहुत बड़ी दुनिया है. इत्तेफाक से मैं इधर आ गया और तुम इतनी आसानी से पकड़ में आ गए.
          तभी पटाखे फूटने और बहुत  से लोगों के ख़ुशी में चिल्लाने की आवाज़ आने लगी. बेताल चौक गया. बोला-जल्दी पतली गली से निकल लो राजन! लगता है युद्ध छिड़ गया है. विक्रम बोला-यह युद्ध नहीं है बेताल! भारत क्रिकेट का विश्व कप जीत गया है. लोग ख़ुशी में पटाखे फोड़ रहे हैं. हिंदी के सभी ब्लॉग पर अभी क्रिकेटिया बुखार में तपे पोस्ट डाले जा रहे हैं. बेताल ने पूछा-यह कौन सा खेल है जिससे इतने सारे लोग गदगद हैं.
       " तुम जब मनुष्य योनि में थे तो कभी गिल्ली डंडा खेला था..? " बिक्रम ने पूछा. "हाँ खेला तो करता था" बेताल ने जवाब दिया.
        " बस उसी तरह का खेल है.... समझो तो यह गिल्ली-डंडा का अंग्रेजी अनुवाद है."
         " अच्छा! लेकिन गिल्ली-डंडा में जीतने पर तो अपनी गली के लोग भी इतना खुश नहीं होते थे."
        " रह गए प्रेत के प्रेत ही! अरे यह गली में नहीं पूरे विश्व स्तर पर खेला गया है. उसमें भारत की जीत हुई है. 28 साल के बाद यह सम्मान प्राप्त हुआ है. "
        " जाने दो राजन! हमें नहीं खेलना."
        " तुम बैकवर्ड हो बेताल. जो क्रिकेट में दिलचस्पी नहीं लेता वह बैकवर्ड है."
       " किसी साईट पर चलकर कुछ पढ़ें ?"
       "अभी सिर्फ क्रिकेट ही क्रिकेट मिलेगा."
       " तो चलो अंतरजाल के बाहर."
       "चलो "
       "तुम योग के रास्ते आये हो मैं दुर्योग के रास्ते. साथ कैसे निकलेंगे?.....तुम ध्यान लगाओ... मैं तुम्हारी पीठ पर आता हूँ."
         विक्रम ने आंख बंद की. बेताल उड़ता हुआ वहां से भाग निकला.

------देवेंद्र गौतम 

Monday 28 March 2011

अंतर्जाल में बेताल-1

(देवेंद्र गौतम)

 बेताल पूरी तरह बोर हो चुका था. विक्रमादित्य के कारण उसका जीना हराम हो गया था. कितनी सदियों से पेड़ की डाल पर या विक्रम के कंधे पर. जैसे प्रेतों का कोई प्राइवेट लाइफ हो ही नहीं. किसी प्रेतनी से आंख लड़ाने का भी मौक़ा नहीं देता कमबख्त. हर बार विक्रम को झांसा देकर भाग तो आता है लेकिन अपने अड्डे पर पहुंचा नहीं कि तलवार लिए विक्रम वापस लौट आता है और फिर कंधे पर लादकर चल देता है. जान बचाने के लिए रोज़ नयी कहानी गढ़नी पड़ती है. लेकिन हिंदी साहित्य में भी कथाकारों की लिस्ट में उसका नाम शामिल नहीं. मनुष्य होता तो कई बार नोबेल पुरस्कार मिला होता. प्रेतों की प्रतिभा का कोई मूल्यांकन ही नहीं होता. बड़ा ही स्वार्थी जीव है यह मनुष्य. विक्रम को कई बार समझाया कि जिद छोड़ो. कुछ दिन तुम भी आराम कर लो. मुझे भी थोड़े चेंज की ज़रूरत है. रहम खाओ. लेकिन कोई सुनवाई नहीं. आखिर बेताल ने तय कर लिया कि ऐसी जगह जा छुपेगा जहां विक्रम उसे ढूंड ही नहीं पाए. उस दिन  नयी कहानी के सवालों का जवाब देने में विक्रम का ध्यान बंटाकर वह भागा तो पेड़ की तरफ गया ही नहीं. सीधा शहर की ओर उड़ चला. विक्रम को माज़रा समझने में थोड़ी देर हो गयी लेकिन वह भी उसे पकड़ने के लिए शहर की तरफ चल पड़ा. बेताल सतर्क था. बार-बार पीछे मुड़कर भी देख लेता था. उसने विक्रम को घोड़े पर आते हुए देख लिया. उस वक़्त बेताल एक व्यस्त चौराहे से गुज़र रहा था. जबरदस्त ट्रेफिक था. सारी गाड़ियां एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में जाम लगा बैठी थीं. बेताल मुस्कुराया. उसे तो हवा में उड़ते हुए जाना था. लेकिन विक्रम का घोडा तो नहीं निकल पायेगा. उसने पीछे मुड़कर देखा. करीब पांच सौ गज की दूरी पर विक्रम जाम में फंसा उसे गुस्से से देख रहा था. बेताल ने हाथ हिलाकर उसे विश किया. विश क्या दरअसल उसे चिढाया और एक दुकान में घुस गया. दरअसल वह दुकान नहीं साइबर कैफे था. बेताल ने देखा छोटे-छोटे केबिनों में लड़के लड़कियां कम्प्यूटर के सामने बैठे इन्टरनेट की दुनिया की सैर कर रहे थे. तरह-तरह के साईट खुले हुए थे. कुछ साफ़-सुथरे कुछ गंदे. तभी उसकी नज़र गेट से अन्दर आते विक्रम पर पड़ी. उसने आव देखा न ताव एक कम्प्यूटर  के स्क्रीन में घुसकर इन्टरनेट की दुनिया में प्रवेश कर गया. अंतर्जाल में चक्कर लगाता वह हरकीरत हीर के ब्लॉग पर जा पहुंचा. वहां कई ब्लोगरों को  पव्वा पीते हुए देखा. वे पीलिया रोग का ग्रास बनने से डर भी रहे थे और पव्वा भी चढ़ाये जा रहे थे. एक ब्लोगर  ने जैसे ही ग्लास में पव्वा ढाला बेताल उसे एक झटके में गटक गया. ब्लोगर को समझ में नहीं आया.. माल गया कहां. पहले से चढ़ा रखा ही था सो उसे लगा कि उसने पी लिया होगा. 
                                         खैर बेताल की आंखों में खुमारी चढ़ने लगी. उसने तय किया कि जबतक विक्रम कम्प्यूटर फ्रैंडली नहीं हो जाता. अंतर्जाल की दुनिया में वह सेफ है. अभी इधरिच रहेगा.

(ब्लोगिंग की दुनिया के दोस्तों! बेताल अंतर्जाल में प्रविष्ट हो चुका है. वह कभी भी आपके साईट पर पहुंच सकता है.  आप उसे अपने साईट पर आने का निमंत्रण भी दे सकते हैं. आपका निमंत्रण वह स्वीकार करेगा. सिर्फ यह गारंटी देनी होगी कि आप विक्रम के पक्ष में डबल क्रॉस नहीं करेंगे.)